बलबीर सिंह सीनियर ने स्वतंत्र भारत को हॉकी का पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. हॉकी का यह दिग्गज अब हमारे बीच नहीं है.

महान बलबीर सिंह सीनियर ने अपने शानदार करियर के दौरान भारतीय हॉकी के इतिहास के कई सुनहरे पन्ने लिखे. उनके इस जादुई सफर में एक ऐसा भी पल आया, जो उनकी अन्य उपलब्धियों की तुलना में बेहद अहम रहा. उन्होंने स्वतंत्र भारत को हॉकी का पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. हॉकी का यह दिग्गज अब हमारे बीच नहीं है. बलबीर सीनियर ने सोमवार को 96 साल की उम्र में अंतिम सांस ली.

वह अभूतपूर्व क्षण 1948 के लंदन ओलंपिक से जुड़ा है, जब भारत अपनी स्वतंत्रता का एक साल पूरा करने वाला था. फाइनल में बलबीर ने चार में से अकेले दो गोल दागे थे. यह सफलता उसी मेजबान ग्रेट ब्रिटेन के खिलाफ थी, जिसने भारत पर वर्षों राज किया था. 2018 में भारत के पहले ओलंपिक स्वर्ण पदक के 70 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में चंडीगढ़ प्रेस क्लब की ओर से आयोजित विशेष कार्यक्रम के दौरान बलबीर सीनियर ने जीत के उस गौरवशाली पल को साझा किया था.

उन्होंने कहा था, 'जब हमारा राष्ट्रगान बजाया जा रहा था और तिरंगा ऊपर जा रहा था, मुझे लगा कि मैं भी ध्वज के साथ उड़ रहा था. देशभक्ति की भावना जो मैंने महसूस की, वह दुनिया में किसी भी अन्य भावना से परे थी.' बलबीर सीनियर ने कहा, 'हम सभी के लिए यह गर्व का क्षण था, जब हमने इंग्लैंड को हराया, जो एक साल पहले तक भारत पर शासन कर रहा था.'

बलबीर सीनियर ने तीन ओलंपिक स्वर्ण पदक (लंदन- 1948, हेलसिंकी- 1952 और मेलबर्न- 1956) जीते, लेकिन उन्होंने यह बताने का मौका कभी नहीं गंवाया कि 1948 की जीत कितनी खास थी. बलबीर सिंह ने कहा था, 'यह जीत 70 साल पहले की है, लेकिन इस कल की तरह ही महसूस करता हूं. मुझे आज भी वह अहसास याद है, जब हमने 1948 के ओलंपिक में ब्रिटेन को 4-0 से मात दी और भारतीय ध्वज फहराया गया था.'

बलबीर सिंह ने अपने हॉकी करियर की शुरुआत गोलकीपर के रूप में की थी और बाद में उन्होंने फुल-बैक और आखिरकार सेंटर फॉरवर्ड के तौर पर धूम मचाई. उन्होंने उस समारोह में कहा था, 'मैं गोलकीपर बनना चाहता था, लेकिन जैसा कि नियति चाहती थी, मुझे एक ऐसा कोच मिला, जिसने मुझे स्ट्राइकर के रूप में खेलने के लिए मजबूर किया.'

बलबीर सीनियर ने उस वाकए को भी याद किया था, जब जबर्दस्त फॉर्म में होने के बावजूद उन्हें 1948 के फाइनल के लिए 39 संभावित खिलाड़ियों में नहीं रखा गया था. उन्होंने कहा, 'मेरे शुभचिंतकों ने लंदन में तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त वीके कृष्ण मेनन से संपर्क किया. सिंह ने कहा कि मेनन के हस्तक्षेप के बाद ही उन्हें प्लेइंग इलेवन में शामिल किया गया था.

बलबीर सीनियर ने कहा था, 'मुझे अभी भी याद है कि मैच शुरू होने से पहले ब्रिटेन का वेंबली स्टेडियम अंग्रेज प्रशंसकों के शोर से गूंज रहा था. हमने शुरुआती बढ़त बना ली और बाद में एक और गोल दागा. हाफ टाइम के बाद कुछ अंग्रेज प्रशंसकों ने भारत का समर्थन करना शुरू कर दिया और आधा दर्जन गोल करने के लिए हमारा हौसला बढ़ाने लगे थे.'

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